उत्तराखंड की त्रासदी इतनी भयावह है कि उसका अंदाजा दूर बैठकर तो कतई नहीं लगाया जा सकता। मदद और राहत बचाव कार्य न जाने कहां हो रहा है इसका भी कुछ अता पता नहीं है। लोग घास फूस खाकर अपने को जिंदा रखे हुए हैं। सरकारी नुमाइन्दों से अच्छी तो हमारी प्रकृति ही है जिसने एक पल में लोगों को मौत की नींद सुला दी तो दूसरे पल अपनी गोद में समेटे हरियाली से लोगों का जीवन भी बचा रही है। उत्तराखंड में तो मानो सरकार नाम की कोई चीज ही नहीं है। पूरे देष के लोगों की निगाह चार धाम पर टिकी हुई है। बड़े-बुजुर्ग सभी एक टक समाचार चैनलों पर टकटकी लगाए बैठे हैं। मैंने अपने ही अंदाज में पूछा कि सब तो ठीक है लेकिन ई विजैवा कहां गवा हो, तभी एक बुजुर्ग ने तपाक से जवाब दिया, गंगा में गएन विजय।
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