योर फादर डेड, कम सून। अचानक आपको कोई यह बात कह दे तो आप की स्वाभाविक प्रतिक्रिया क्या होगी। बेतार के युग में अच्छा ही हुआ कि तार का काम तमाम हो गया। वरना न जाने कितने लोग हार्ट अटैक से दुनिया को अलविदा कह गए होते। दरअसल टैब और लैप की पीढ़ी को मालूम ही नहीं है कि तार चीज क्या है। 90 के पहले वाले तो लगभग इसे बखूबी जानते हैं लेकिन 90 के बाद वाले षायद ही इसे जानते हों। तार आ जाने का मतलब है कि बड़े-बड़ों की पैंट गीली हो जाती थी। तार का पर्यायवाची हो गया था अषुभ लेकिन ऐसा नहीं है कि 160 बरस पुरानी तार यानी टेलीग्राम की यह सेवा केवल अषुभ संदेषों पर ही टिकी थी। सूचना का यह सबसे तेज माध्यम था जो लगभग 24 घंटे के भीतर देष के इस कोने से उस कोने तक सूचनाएं पहुंचा देता था। लेकिन समय के साथ तकनीक ने ऐसी छलांग मारी कि सेकेंडों में सूचनाएं दुनिया के किसी कोने पर पहुंचाई जा सकती हैं। वो भी बेतार से यानी तार अब लोगों के लिए अप्रासंगिक हो चला है। मैंने तो तार आया है सुना होगा तो उसके साथ मरने की ही सूचना सुनी है। बहुतेरे लोग अच्छी भी सूचना सुने होंगे लेकिन इतना तो जरूर है कि आज की तनाव भरी इस जिंदगी में अगर तार उसी तरह से होता तो तय मानिये कि तमाम कमजोर दिल वाले तो तार के साथ ही अल्ला को प्यारे हो गए होते। यह बात और है कि तार अब कोई करता नहीं लेकिन तार की दहषत जिन्होंने देखी है वो ता उम्र इसे भूल नहीं सकते। ज्यादा नहीं दो बरस बाद से हम अपने बच्चों को तार के किस्से सुनाएंगे। यकीनन तार के किस्से चाचा चैधरी, बीरबल, दादा-दादी की कहानियां, स्पाइडर मैन आदि से ज्यादा रोमांचक होंगी। इस ऐतिहासिक और प्रभावषाली सेवा को बीएसएनएल आगामी 15 जुलाई से बंद करने जा रहा है। तार का इतिहास इस बेतार के युग में भी हम जीवित रखेंगे। क्योंकि तार से हमारी हर तरह की भावनाएं जुड़ी हैं।
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