Monday, June 1, 2009

आनंद भवन इलाहाबाद में नहीं फूलपुर में

इलाहाबाद में ही नहीं पूरे देश की तस्वीर परिसीमन ने बदल कर रख दी हैै। नए परिसीमन से जहां बडे बडों की चुनावी गणित इस बार गडबडा गई वहीं तमाम स्थापित चीजों के मायने भी बदल गए हैं। आपको जानकर हैरत होगी कि इलाहाबाद की पहचान अब इलाहाबाद की नहीं रही बल्कि फूलपुर की हो गई है। कहने का मतलब बिल्कुल साफ है। नए परिसीमन में फूलपुर संसदीय सीट में शहर की दो विधानसभाओं को शामिल कर लिया गया है। पहले फूलपुर संसदीय खांटी ग्रामीण विधानसभाओं से मिलाकर बनाई गई थी लेकिन इस बार उसमें शहर का एक बडा और महत्वपूर्ण हिस्सा चला गया है। यही वजह रही कि भाजपा के दिग्गज डा मुरली मनोहर जोशी ने इलाहाबाद से चुनाव न लडने का फैसला किया।

इलाहाबाद शहर की दोनों विधानसभा सीट शहर उत्तरी और शहर पश्चिमी जो अब फूलपुर का हिस्सा है कभी इलाहाबाद का हिस्सा हुआ करती थी। राजनीतिक गुणा गणित कुछ भी हो लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि इससे इलाहाबाद की पहचान ही अचानक से फूलपुर के खाते में चली गई। इलाहाबाद के बारे में थोडा भी जानने वालों के मानस पटल पर संगम, पं जवाहर लाल नेहरू की जन्मस्थली आनंद भवन, इलाहाबाद विश्वविद्यालय सबसे पहले आता है। ये सभी अब इलाहाबाद में नहीं रहे बल्कि फूलपुर का हिस्सा हो गए हैं।

यह बात और है कि पं जवाहर लाल नेहरू भी इलाहाबाद से नहीं फूलपुर संसदीय सीट से ही चुनाव लडा करते थे। इस लिहाज से लगभग पचास साल बाद उनके संसदीय क्षेत्र में अब उनका निवास स्थान शामिल हो गया है। इलाहाबाद संसदीय सीट से इस चुनाव के पहले तक जो भी चुनाव जीतकर जाता था उसके पास गर्व से यह बताने को होता था कि वो जिस सीट से चुनकर आया है उसका बहुत ही समृदधशाली इतिहास रहा है। लेकिन अब ऐसा गर्व फूलपुर संसदीय सीट से चुने जाने वाले सांसद के खाते में चला गया है। अब वो कहेगा कि जिस क्षेत्र से वो चुनकर आता है वहां बडे बडे कानूनविद हैं। चूंकी हाईकोर्ट भी फूलपुर संसदीय सीट में ही है। पूरब का आक्सफोर्ड कहा जाने वाला इलाहाबाद विश्वविद्यालय है। इतना ही नहीं स्वाधीनता आंदोलन का जीता जागता नमूना और नेहरू खानदान का पुश्तैनी आवास आनंद भवन है। इसके साथ ही गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती का त्रिवेणी संगम का कुछ हिस्सा है। जबकि इलाहाबाद संसदीय सीट से अब चुने गए सांसद के पास केवल गर्व की अनुभूति करने के लिए नैनी अद्योगिक क्षेत्र है जिसकी हालत खस्ता है।

कहने का मतलब साफ है कि साठ साल तक इलाहाबाद के सांसदों ने गर्व का अनुभव किया। काम उन्होंने डा जोशी को छोडकर भले ही कुछ न किया हो लेकिन इलाहाबाद के नाम पर ही तने रहते थे। अब बारी फूलपुर के सांसद की है। ऐसे में अगर किसी को भी गर्व की अनुभूति करनी हो और देशभर में तन कर चलना हो तो वो खुद कुछ ऐसा करे कि लोग इस सीट को उसी के नाम से जानें वरना तो इस भेडियाधसान में तमाम लोग चुनाव जीतते हैं और फिर उनका कोई नाम लेवा नहीं होता।

संजय कुमार मिश्र