लोकसभा चुनाव में इस बार बहुत ही रोचक मामला सामने आया। लुटिया, खटिया और बिटिया का सवाल उठाने वालों की तो लुटिया डूबी ही जिसके लिए उठाया उसकी भी खटिया टूट गई। आप सोच रहे होंगे यह लुटिया खटिया और बिटिया है क्या। आपका सोचना लाजिमी है। दरअसल चुनाव प्रचार के दौरान सोशल इंजीनियरिंग की हवा निकालने के लिए दक्षिणपंथियों ने इसे हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का प्रयास तो जरूर किया मगर यह फार्मूला दगा कारतूस साबित हुआ।
कहा जा रहा है कि सर्वजन की बात करने वाली मैडम माया ने मेरे संघर्षमय जीवन एवं बहुजन मूवमेंट का सफरनामा नामक पुस्तक के वाल्यूम एक में 154 पृष्ठ पर दलितों को संबोधित करते हुए कहा गया है कि मनुवादी अब आपको लुटिया यानी लोटे में पानी देने लगे हैं, खटिया यानी चारपाई पर बिठाने भी लगे हैं इसलिए अब सावधान हो जाने की जरूरत है। क्योंकि अब वो दिन दूर नहीं जब वे आपको अपनी बिटिया भी देने लगेंगे।
इस बात से मनुवादियों में आक्रोश पनपेगा और वे चुनाव में सर्वजन की पार्टी को छोड दक्षिणपंथियों के पाले में आ जाएंगे इसी मंशा के साथ दक्षिणपंथियों ने इस विवादित पृष्ठ की फोटो प्रतियां खूब बांटी। वाराणसी में तो इसका इस कदर इस्तेमाल किया गया कि अखबारों के बीच में डालकर सुबह वितरित कराया गया, जिसमें दो हाकरों के खिलाफ मुकदमा भी बाद में दर्ज किया गया। लेकिन इलाहाबाद के फूलपुर संसदीय क्षेत्र में धडल्ले से इसे बांटा गया और नतीजा कुछ और ही निकला। मनुवादियों के सहयोग से ही बसपा का उम्मीदवार चुनाव जीत गया।
यह बात और है कि दोनों ही दलों की इस चुनाव में लुटिया डूब गई। खटिया टूट गई या फिर खडी इसलिए हो गई क्योकि किसी के हाथ में कुछ नहीं लगा। प्रचार में न तो इमोशनल अत्याचार काम आया और न ही सोशल इंजीनियरिंग केवल जय ही होती रही वो भी मंदी की, आतंकवाद की और महंगाई की।
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achha hai ...saamyik vishya par sateek aalekh k liye badhai
ReplyDeleteacha hai swagat apka
ReplyDeletewah ! narayan narayan
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